प्रश्नकर्ता मोहन यादव:- महाराज लोग कहते हैं नारी लक्ष्मी स्वरूपा है, उसपे हाथ नही उठाना चाहिए. इसपे शास्त्रो का क्या मत है स्पट करें….
पंडित आदित्यनारायण शास्त्री जी:- बिल्कुल सत्य कथन है नही मारना चाहिए, मै तो कहता हूँ पुत्री तुल्य व्यवहार करना चाहिए , लेकिन स्त्रियों को भी माता के समान अपने पति की सेवा करनी चाहिए.
लेकिन यदि प्रसंग कुछ और ही हो, स्त्री चरित्र हीनता पे उतर आये, पति आज्ञा के विरुद्ध रीलबाज़ी करे तो फिर उत्तर अलग हो जायेगा
यह बकवास किसने फैलाई कि स्त्री पर बिल्कुल ही हाथ नहीं उठाया जाना चाहिए ?
हनुमान जी ने भी दो गदा खींच के मारी थी लंकिनी को। भरत ने अपनी माँ को भला बुरा सुनाया था और मंथरा के भी कंटाप पड़े थे ।
सूर्पनखा की केवल नाक कान कटे की नही..?
अब रानी चेनम्मा और रानी लक्ष्मीबाई युद्ध के मैदान में गयी तो क्या स्त्री समझ कर उन पर वार नहीं किया गया होगा ?
युद्ध का मैदान स्त्री पुरुष का भेद क्या जाने।
लड़ना है तो लड़ो नहीं तो और काम है करने को।
कन्या है तो हाथ मत उठाओ, आखिर क्यों भाई?
गलती करेगी तो मार भी पड़ेगी जैसे बेटे को पड़ती है। सब सुविधा दो लेकिन हाथ मत उठाओ।
इसी मानसिकता ने सारी गड़बड़ की है।
दो थप्पड़ बचपन में लगाओ और फिर बताओ की तुम कहीं की परी नहीं हो।
गलती करोगी तो सूती जाओगी। तब वह एक दम सही रास्ते पे चलेगी।
सारा काम मेरी गुडिया, मेरी रानी, मेरी परी करने वालों ने बिगाड़ा है। ये अनर्गल प्रलाप बंद होना चाहिए शास्त्रो का ज्ञान बचपन मे माता और जवानी मे पती दे तो स्त्री सही रहे,, जन्म से जो माता शास्त्रो को पढ़ने का संस्कार ना दे तो बेचारा पति जवानी मे कैसे पढा लेवे?? और दूसरा की क्या खुद पति ने शास्त्रो का अध्यन कर रखा है???
बिना ऋषियो के मार्ग पे चले जीवन सुंदर नही हो सकता यही सार है