कृष्ण यजुर्वेदीय ‘कठोपनिषद्’ – 2/3/14-15 :- यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा येऽस्य हृदि श्रिताः।अथ मर्त्योऽमृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते ॥१४॥यथा सर्वे प्रभिद्यन्ते हृदयस्येह ग्रन्थयः।अथ मर्त्योऽमृतो भवत्येतावद्ध्यनुशासनम् ॥१५॥ अनुवाद:- जिस समय इसके हृदय/बुद्धि में आश्रय करके रहनेवाली सम्पूर्ण कामनाएँ छूट जाती हैं, उस समय वह ‘मर्त्य’ (अर्थात् मरणधर्मा) अमर हो जाता है और ‘इस शरीर से ही’ (अर्थात् […]
Categories